स्त्री का श्राप: अंतिम अध्याय

धरहर गाँव की रातें अब और भी खौफनाक होती जा रही थीं। लोगों ने कई सालों से उस स्त्री को देखा, जिसने गाँव के पुरुषों और बच्चों को अपनी ओर आकर्षित किया और फिर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। गाँव में हर शख्स इस बात से डरता था कि कहीं वो रात की चुप्पी में ‘स्त्री’ की आवाज़ न सुन ले। ये आवाज़ अलग-अलग रूपों में आती थी—कभी रोती हुई, कभी हंसती हुई, कभी दर्द भरी चीख।

मोहन और उसके दोस्तों ने शारदा की आत्मा के बारे में जाना, और ये भी पता चला कि शारदा के साथ हुए अन्याय के बाद उसकी आत्मा और उसका अजन्मा बच्चा दोनों इस गाँव में भटक रहे थे। मोहन को एहसास हुआ कि ये सिर्फ उसकी माँ और गाँव के लोगों का पाप नहीं था; इसके पीछे कुछ और गहरा सच था।
रात के समय, मोहन अपने दोस्तों के साथ उस पुराने मंदिर के पास बैठा था। मंदिर के पुजारी ने कई बार चेतावनी दी थी कि कोई भी रात में बाहर न निकले, लेकिन मोहन को अपनी जिज्ञासा रोक पाना मुश्किल हो रहा था।

मोहन (आवाज़ में घबराहट): "क्या तुम्हें सच में लगता है कि यह स्त्री हमसे कुछ कहने की कोशिश कर रही है?"

रवि (डरते हुए): "मुझे नहीं पता, पर जो लोग उसकी आवाज़ सुनते हैं, वे कभी वापस नहीं आते।"

मोहन के मन में एक अजीब सा डर घर कर चुका था। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे कोई उन्हें देख रहा हो। अचानक एक हवा का झोंका आया, और उनके चारों ओर अंधेरा घिरने लगा।
तभी, एक धीमी आवाज़ आई। यह आवाज़ स्पष्ट रूप से एक स्त्री की थी, पर उसमें दर्द और क्रोध का मिश्रण था।

स्त्री (धीमी और भूतिया आवाज़ में): "क्यों आए हो यहाँ? क्या तुम्हें भी मरने का शौक है?"
मोहन (चौंकते हुए): "क...कौन हो तुम? सामने आओ!"

लेकिन कोई जवाब नहीं आया। बस हवा के झोंके तेज होते गए, और आवाज़ धीरे-धीरे गुम हो गई। मोहन के दोस्तों ने डर के मारे भागने का फैसला किया, लेकिन मोहन ने ठान लिया था कि वो इस रहस्य को सुलझाकर रहेगा।
अगली सुबह, मोहन ने गाँव के सबसे बुजुर्ग आदमी से बात की, जिनका नाम रामलाल था। रामलाल ने वह सब कुछ देखा था, जो गाँव में पिछले 20 सालों से हो रहा था।

रामलाल (गंभीर आवाज़ में): "उस स्त्री का नाम शारदा था। वो इस गाँव की सबसे सुंदर और नेकदिल औरत थी। लेकिन गाँववालों ने उसके साथ जो किया, वो अक्षम्य है।"

मोहन (चौंकते हुए): "क्या किया था गाँववालों ने?

रामलाल ने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे उस भयानक सच्चाई का पर्दा उठाया।

रामलाल (दर्द भरी आवाज़ में): "शारदा इस गाँव के मुखिया के बेटे से प्यार करती थी। दोनों का रिश्ता छुपा हुआ था। लेकिन जब ये बात मुखिया को पता चली, तो उसने शारदा को बदनाम कर दिया। वो गर्भवती थी और गाँववालों ने उसे पापिन करार देकर मार डाला।"

मोहन के चेहरे पर घबराहट साफ नजर आ रही थी।

मोहन (गुस्से से): "और उसका बच्चा? उसका क्या हुआ?"

रामलाल (आंखों में आँसू): "उसे भी कभी दुनिया नहीं देख सकी। शारदा के साथ उसके अजन्मे बच्चे की भी आत्मा यहाँ भटक रही है।"

शाम होते ही, मोहन और उसके दोस्त उसी पुराने कुएं की ओर गए, जहाँ कहा जाता था कि शारदा और उसके बच्चे की आत्मा रहती थी। जैसे ही वे वहाँ पहुँचे, एक अजीब सी ठंड महसूस होने लगी। मोहन ने चारों ओर देखा, लेकिन कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

रवि (डरते हुए): "मुझे यहाँ अच्छा महसूस नहीं हो रहा। चलो वापस चलते हैं।"

मोहन (आवाज़ में दृढ़ता): "नहीं, हमें इस रहस्य को सुलझाना ही होगा।"

तभी, कुएं के पास एक तेज़ हवा चली और एक परछाई दिखने लगी। वो स्त्री की ही थी, उसकी आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों झलक रहे थे।

स्त्री (क्रोध में चीखते हुए): "तुम्हारे गाँव ने मुझे मार दिया, लेकिन मेरी आत्मा को शांति नहीं मिली।"

मोहन (डरते हुए): "हम...हम तुम्हें शांति देना चाहते हैं। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?"
स्त्री (क्रोधित होकर): "तुम मेरे साथ जो किया, उसे भूल गए? मेरा बच्चा अब भी इस दुनिया में भटक रहा है। जब तक उसे शांति नहीं मिलेगी, तब तक मैं भी मुक्त नहीं होऊंगी।"

मोहन (हैरान होकर): "तुम्हारा बच्चा...कहाँ है?"

स्त्री (आवाज़ में दर्द और गुस्सा): "वो इस गाँव की गलियों में भटक रहा है, उसे उसकी पहचान नहीं मिली। जब तक तुम मेरे बच्चे को नहीं ढूंढोगे, तब तक मैं किसी को भी नहीं बख्शूँगी।"
अब मोहन को यह एहसास हो चुका था कि शारदा और उसके बच्चे की आत्मा को तभी शांति मिल सकती है, जब गाँववालों ने अपने पापों को स्वीकार किया और बच्चे को उसकी पहचान दी। मोहन ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पूरे गाँव को इकट्ठा किया।

गाँव के लोग मंदिर के पास जमा हुए थे। सबके चेहरों पर डर साफ नजर आ रहा था।

मोहन (गंभीरता से): "हम सबने मिलकर एक निर्दोष औरत और उसके अजन्मे बच्चे के साथ जो किया, उसकी सजा हमें मिल रही है। अब वक्त आ गया है कि हम अपने पापों को स्वीकारें।"

गाँव के मुखिया (गुस्से से): "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। ये सब झूठ है।"

तभी अचानक, एक जोरदार चीख सुनाई दी। मंदिर के चारों ओर तेज हवाएँ चलने लगीं, और शारदा की आत्मा वहाँ प्रकट हुई।
शारदा की आत्मा (क्रोध में): "तुम सबने मुझे मारा। लेकिन अब मेरे बच्चे को शांति नहीं मिली। तुम सभी को इसकी कीमत चुकानी होगी!"

मोहन (गिड़गिड़ाते हुए): "हमसे क्या करना होगा? हम तुम्हारे बच्चे को शांति देने के लिए तैयार हैं।"
शारदा की आत्मा ने एक खामोश पल के बाद कहा, "मेरा बच्चा उसी कुएं में कैद है, जहाँ तुमने हमें दफनाया। उसे मुक्त करो।"
मोहन और गाँववालों ने कुएं के पास जाकर एक विशेष पूजा का आयोजन किया। गाँव के बड़े-बुजुर्गों ने उस पाप को स्वीकार किया, जिसे उन्होंने सालों पहले अंजाम दिया था। कुएं से एक रोशनी प्रकट हुई और शारदा की आत्मा और उसके बच्चे की आत्मा, दोनों धीरे-धीरे उस रोशनी में समा गए।

गाँव के लोग एक गहरी साँस लेने लगे कि अब यह भयानक श्राप खत्म हो चुका है।

लेकिन तभी, एक अजीब सी आवाज़ गूंजने लगी। एक नई स्त्री की आवाज़, और यह आवाज़ भूतिया और धमकी भरी थी।

अज्ञात स्त्री (धमकी भरी आवाज़ में): "तुमने जो सोचा था, वह गलत था। यह श्राप खत्म नहीं हुआ है, यह तो बस शुरुआत है।"
मोहन और गाँव के लोग दंग रह गए। एक नई स्त्री की आत्मा अब गाँव में प्रकट हो चुकी थी। सबको समझ आ चुका था कि यह रहस्य और डर की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एक और भयानक ताकत ने धरहर गाँव पर अपनी पकड़ बना ली थी।

गाँववालों ने शारदा की आत्मा को शांति दी, लेकिन अज्ञात शक्तियाँ अब भी गाँव में मौजूद थीं। कहानी ने एक ऐसा मोड़ लिया जहाँ कोई भी यह नहीं समझ पाया कि आने वाले समय में उन्हें किस और खतरनाक सच्चाई का सामना करना पड़ेगा।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अत्याचार और अन्याय का परिणाम हमेशा भोगना पड़ता है। सत्य को छुपाना खतरनाक होता है, और प्रायश्चित किए बिना शांति नहीं मिलती। अहंकार और क्रूरता अंततः विनाश का कारण बनते हैं, जैसा कि गाँववालों ने शारदा और उसके बच्चे के साथ किया। अंधविश्वास और डर से प्रेरित होकर किए गए गलत कार्य विनाशकारी हो सकते हैं। कहानी यह संदेश देती है कि मानवता और न्याय को हमेशा प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि गलतियों का दंड अवश्य मिलता है।


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