दिल को दरिया सा कोई दर्द छलकाता है।
नफ़रत की राहों में जब मोहब्बत की बूंदें गिरती हैं,
तब अंधेरे भी उजाले का नाम लेते हैं।”
कहानी की शुरुआत
अज़ल, एक अनाथ गैंगस्टर, जिसके अंदर एक खौफनाक जिन्न का साया रहता है, अपने अकेलेपन और अंधेरे से लड़ रहा है। जिन्न उसे हिंसा और गुनाह की दुनिया में और गहरे धकेलता है।
दूसरी तरफ, ज़िया, एक मासूम लड़की, अनजाने में अज़ल को एक गैरकानूनी काम करते हुए देख लेती है और पुलिस को सूचना देती है। अज़ल जेल जाता है और रिहा होने पर ज़िया से बदला लेने की ठानता है।
रात के घने अंधेरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। हल्की-हल्की ठंडी हवा में शहर की वीरान सड़कों पर एक साया लड़खड़ाते हुए चल रहा था। यह साया था अज़ल—एक अनाथ गैंगस्टर, जिसने जिंदगी को बस गुनाह और नफरत के साथ जिया था। वो नशे में धुत था, उसकी आँखें आधी बंद, कदम लड़खड़ा रहे थे। उसकी पहचान सिर्फ उसका खौफ था, और उसका साथी केवल उसका गुनाह। अज़ल के अंदर एक अंधेरे का साया छिपा हुआ था—एक जिन्न का, जो उसके गुनाहों में उसके साथ रहा, उसकी आत्मा को धीरे-धीरे खोखला कर चुका था।
अज़ल उस रात अपने भीतर के घुटन और अकेलेपन से भागने की कोशिश कर रहा था। उसे अहसास था कि उसकी ज़िंदगी में कोई स्थायी चीज़ नहीं थी, सिवाय उसके जुर्म के। शराब की बोतल उसके हाथ में थी, और उसकी आँखों में बेचैनी साफ नजर आ रही थी।
तभी रास्ते में एक कोने में बैठा एक बूढ़ा भिखारी बाबा नजर आया। बाबा के चहरे पर सालों की धूल, संघर्ष और अनुभव की झलक थी। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो अज़ल को सीधे उसकी आत्मा तक महसूस हुई।
अज़ल ने ठहरकर बाबा को देखा और धीरे से हंसा, "क्यों बाबा, तू भी मेरी तरह इस दुनिया से दूर भाग रहा है?"
बाबा ने उसकी ओर गौर से देखा, जैसे वो उसकी ज़िंदगी के सारे दुखों को समझ रहे हों। बाबा ने शांत स्वर में कहा, "दुनिया से भाग नहीं सकता, बेटा। अंधेरों का पीछा करने वाले अक्सर उजाले से डरते हैं।"
अज़ल ने बोतल का एक घूंट लिया और बोला, "उजाला? मेरे लिए? यहाँ बस ये गन और ये गुनाह हैं। अब यही मेरा परिवार है। इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है, बाबा।"
बाबा ने गहरी सांस ली और बोले, "एक दिन कोई न कोई आएगा, जो तेरे इस अंधेरे जीवन में उजाला करेगा। जब तुझसे मोहब्बत होगी, तो ये गन तेरे लिए सबसे बड़ा बोझ बन जाएगी।"
अज़ल ने बाबा की बातें सुनकर बोतल जमीन पर पटक दी। उसकी आँखों में एक गहरा दर्द था, और मन में नफरत। उसने अपने कंधे पर टंगे पिस्तौल को निकाला और बाबा के सामने दिखाते हुए कहा, "यह पिस्तौल ही अब मेरी मोहब्बत है। यही मेरी जिंदगी की हकीकत है। मोहब्बत? वो किस्मत वालों के लिए होती है। मेरी किस्मत में बस यह अंधेरा और जुर्म लिखा है।"
बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया। उनकी आँखों में सिर्फ एक अजीब सा शांति भरा दृष्टिकोण था, जैसे उन्हें पहले से पता हो कि अज़ल की जिंदगी में कौन सा तूफान आने वाला है।
अगले दिन, अज़ल एक पुराने और सुनसान गोदाम में अपने गैंग के साथ बैठा हुआ था। वो सब मिलकर एक बड़ी डील की प्लानिंग कर रहे थे। गोदाम के चारों ओर फैले हथियार और ड्रग्स इस बात का इशारा कर रहे थे कि यह गैंग किसी छोटे-मोटे क्राइम में नहीं था।
अज़ल के चेहरे पर गुस्से और घमंड की झलक थी। वो हर प्लान का हिस्सा बनाता, लेकिन खुद को सबसे अलग और ताकतवर समझता था। उसकी नजरों में बाकी लोग बस प्यादे थे, जो उसके इशारों पर चलते थे।
तभी अचानक गोदाम के बाहर जोर से ब्रेक लगने की आवाज़ आई। सभी चौकन्ने हो गए। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, दरवाजा जोर से धक्का देकर खुला, और अंदर पुलिस घुस आई।
अज़ल की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। वो खड़ा हुआ और गरजते हुए बोला, "किसने खबर दी?"
पुलिस के अफसर ने उसकी ओर घूरते हुए कहा, "तुम्हें पकड़वाने वाली एक लड़की थी, जिसने तुम्हें कुछ गलत करते हुए देखा था।"
अज़ल के मन में अचानक नफरत की आग जल उठी। वो समझ गया कि किसी अंजान ने उसे पकड़वा दिया था। लेकिन उसके दिमाग में सिर्फ एक सवाल घूम रहा था—कौन थी वो लड़की
कहानी की दूसरी तरफ थी ज़िया। ज़िया एक साधारण और शरीफ घर की लड़की थी, जो हमेशा सच और न्याय की राह पर चलती थी। उसे बचपन से ही यह सिखाया गया था कि गलत को गलत कहना चाहिए, चाहे कोई भी हो।
उस दिन जब ज़िया कॉलेज से लौट रही थी, उसने अज़ल को और उसके गैंग को एक बंद गोदाम के पास कुछ गड़बड़ करते देखा। उसे अंदेशा हुआ कि कुछ गलत हो रहा है। बिना सोचे उसने पुलिस को फोन किया और उन्हें सारी जानकारी दे दी।
उसका मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था, लेकिन उसकी एक मासूम सी हरकत ने उसकी जिंदगी को एक खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया।
अज़ल जेल से छूट चुका था। अब उसकी आँखों में बस एक ही आग थी—बदले की। उसे यह बात परेशान कर रही थी कि एक लड़की ने उसकी जिंदगी में इतना बड़ा तूफान खड़ा कर दिया। उसने अपने सारे सोर्सेस का इस्तेमाल किया और पता लगाया कि वो लड़की कौन थी।
वो थी ज़िया—एक सीधी-सादी, मासूम लड़की, जिसने अंजाने में अज़ल को गिरफ्तार करवा दिया था। अब अज़ल ने ठान लिया था कि उसे अपनी बेइज्जती का बदला लेना है, और ज़िया उसका निशाना बनने वाली थी।
ज़िया अपने कॉलेज से लौट रही थी, जब अचानक रास्ते में उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है। उसने कई बार मुड़कर देखा, लेकिन सन्नाटा पसरा हुआ था। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे लगने लगा कि कुछ गलत होने वाला है।
अचानक, एक सुनसान गली में अज़ल ने उसका रास्ता रोक लिया। ज़िया का चेहरा सफेद पड़ गया। वो पहचान गई कि यही वो आदमी था, जिसे उसने पुलिस के हवाले किया था।
"तुम... तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" ज़िया ने घबराते हुए पूछा।
अज़ल ने अपनी आँखों में नफरत भरी एक खौफनाक मुस्कान के साथ जवाब दिया, "तूने मुझे पहचाना नहीं? पर मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूँ। तूने मुझे पुलिस के हवाले किया था। अब मैं तुझे दिखाऊंगा कि मुझे छेड़ने का अंजाम क्या होता है।"
ज़िया ने अपने चारों ओर देखा, लेकिन इस वीरान गली में कोई उसे बचाने वाला नहीं था। उसने कांपते हुए कहा, "मैंने कुछ गलत नहीं किया। तुम गुनाह कर रहे थे, मैंने वही किया जो सही था।"
अज़ल की आँखों में नफरत और तेज हो गई। उसने एक कदम आगे बढ़ाया और गहरी आवाज़ में बोला, "सही? इस दुनिया में सही और गलत का फैसला करने का हक तुझे किसने दिया? मैं तुझे सिखाऊंगा कि मुझे छेड़ने का क्या अंजाम होता है।"
ज़िया ने भागने की कोशिश की, लेकिन अज़ल ने उसे पकड़ लिया। उसकी आँखों में वही डरावनी झलक थी, जो किसी हैवान की होती है। उसने ज़िया के साथ जबरदस्ती की, उसकी इज्जत लूट ली।
ज़िया की चीखें सुनने वाला कोई नहीं था। वो टूट चुकी थी। उसकी आँखों में दर्द और डर की तस्वीर थी। वो समझ नहीं पा रही थी कि उसकी एक छोटी सी सही फैसले ने उसकी ज़िंदगी को इस मोड़ पर ला खड़ा किया।
अज़ल ने ज़िया को छोड़ दिया, लेकिन उसकी आत्मा अब भी कहीं न कहीं उसे कचोट रही थी। वो बदला लेने आया था, लेकिन अब उसे अपने भीतर एक अजीब सा खौफ महसूस हो रहा था। जिन्न का साया उसके साथ था, उसे अंधेरे की ओर और भी धकेल रहा था।
अज़ल के कदम भारी हो रहे थे, उसके दिमाग में सवाल घूम रहे थे—क्या उसने सही किया? क्या उसे इस हद तक जाना चाहिए था? पर उसकी आत्मा में जिन्न का असर इतना गहरा था कि उसे सही और गलत का फर्क समझ नहीं आ रहा था।
ज़िया टूट चुकी थी। वो अपनी जिंदगी को दोबारा संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हर कदम पर अज़ल की यादें और उसका खौफ उसे घेर लेता था। उसके भीतर का विश्वास टूट चुका था।
अब आगे क्या होगा—अज़ल और ज़िया की जिंदगियाँ दो अलग-अलग राहों पर चलते हुए भी आपस में टकरा रही थीं। ज़िया के मन में डर और नफरत की जंग थी, लेकिन कहीं न कहीं वो इस सच्चाई को भी समझने लगी थी कि अज़ल के साथ जो हुआ था, उसने उसे इस रास्ते पर ला खड़ा किया। दूसरी ओर, अज़ल के भीतर का जिन्न अब और ज्यादा ताकतवर होता जा रहा था, उसे गुनाह की गहराइयों में धकेल रहा था।
हालांकि, ज़िया के प्रति अज़ल के अंदर अब नफरत और गिल्ट दोनों साथ-साथ चल रहे थे। उसे यह एहसास होने लगा कि बदले की आग ने उसकी आत्मा को और जला दिया है। उसकी जिंदगी का खालीपन अब और बढ़ चुका था।
लेकिन सवाल ये था—क्या ज़िया अपने दर्द से उबरकर अज़ल को माफ कर पाएगी? और क्या अज़ल अपने भीतर के जिन्न को काबू करके खुद को इस गुनाहों की दलदल से निकाल पाएगा? मोहब्बत और नफरत की इस जंग में जीत किसकी होगी—ज़िया की मासूमियत या अज़ल का अंधेरा?
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