अंतिम बस
दिसंबर की सर्द रात थी। घड़ी ने अभी-अभी 2:00 बजे का घंटा बजाया था।
रामपुर बस स्टैंड लगभग वीरान था। ठंडी हवा की सरसराहट, टपकती नल की बूंदें और सन्नाटा — सब मिलकर इस जगह को एक अजीब-सा डरावना रूप दे रहे थे।
अदिति, एक 22 वर्षीय कॉलेज छात्रा, शहर से लौटते वक़्त ट्रेन छूट जाने के कारण मजबूरी में इसी पुराने, कम-चर्चित बस स्टैंड पर आकर खड़ी हो गई थी। उसका मोबाइल बंद हो चुका था, और आसपास कोई नज़र नहीं आ रहा था।
सिर्फ एक बूढ़ा चौकीदार, जो झुकी कमर और मुरझाए चेहरे के साथ प्लेटफार्म की अंतिम बेंच पर बैठा था।
“बाबा, अगली बस कब आएगी?” अदिति ने धीरे से पूछा।
बूढ़े ने गर्दन उठाई, आँखों में एक अजीब चमक थी।
> "अंतिम बस आती है… रोज़ इसी वक्त। लेकिन उसमें सवारी चढ़ती तो है, लौटती कभी नहीं।"
अदिति मुस्कुरा दी, “फिल्मी लग रहा है,” और सामने वाली बेंच पर बैठ गई।
लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया, ठंड गहराने लगी, और वातावरण और भी अजीब होता गया।
स्टैंड की घड़ी अब 2:15 पर अटक गई थी, लेकिन उसकी सूई अब भी हिल रही थी — 2:15… 2:15… 2:15…
2:18 पर धुंध में से एक हल्की सी लाल रौशनी झिलमिलाई।
एक पुरानी, धुएं से भरी, भारी बस धीरे-धीरे सामने आकर रुकी।
बस में न तो कोई कंडक्टर था, न टिकट लेने वाला।
ड्राइवर की सीट पर बैठा आदमी पूरी तरह काले कपड़ों में था — उसका चेहरा बिल्कुल भी नहीं दिख रहा था।
बस की हर खिड़की बंद थी, लेकिन अंदर की बत्तियाँ जल रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अंदर है… लेकिन दिखता कोई नहीं।
बस का दरवाज़ा अपने-आप “छूं” की आवाज़ के साथ खुल गया।
अदिति हिचकिचाई, मगर भीतर से आती गर्माहट और ठंड से राहत के लोभ में वो चढ़ गई।
सीटें साफ थीं। न कोई धूल, न कोई गंदगी।
वो सबसे पीछे की सीट पर बैठ गई।
बस धीरे-धीरे चलने लगी… मगर वो सड़क पर नहीं, किसी अनजान काली पगडंडी पर बढ़ रही थी।
कुछ ही मिनटों में बस के अंदर एक अजीब सी घुटन फैलने लगी।
पीछे की सीटों पर बैठे कुछ धुंधले चेहरे अब धीरे-धीरे दिखाई देने लगे थे।
सब चुपचाप, बिना हिले-डुले, सामने देख रहे थे।
उनमें से किसी के शरीर का कोई हिस्सा धुंधला था — जैसे सिर नहीं, या चेहरा जला हुआ।
अदिति ने डरते-डरते एक महिला की ओर देखा — उसकी आँखें थीं ही नहीं।
उसने अदिति की तरफ बिना मुड़े कहा:
> “तुम भी अब हमारी तरह हो गई हो… देरी से चढ़ी हो, पर उतर नहीं पाओगी।”
अदिति की साँसें तेज़ हो गईं। उसने सीट से उठना चाहा, पर उसके पैरों में अजीब सा भार था।
बस की रफ्तार अब बढ़ गई थी… और बाहर का नज़ारा पूरी तरह काला।
अदिति ने खिड़की से झाँककर बाहर देखा — लेकिन वो रास्ता किसी शहर का नहीं लग रहा था।
बाहर कोई बिजली के खंभे नहीं थे, कोई मकान नहीं, कोई आवाज़ नहीं — बस अंधकार, जो उसके भीतर तक उतर रहा था।
उसका मन अचानक भारी हो गया।
वो सीट के नीचे मोबाइल तलाशने लगी, जो बंद था — लेकिन स्क्रीन पर खुद-ब-खुद लिखा आने लगा:
"TIME: 2:15
DESTINATION: UNRETURNED
PASSENGER: ACCEPTED"
उसने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन आवाज़ जैसे गले में फंस गई।
तभी सामने लगी टीवी स्क्रीन पर एक पुराना वीडियो चलने लगा —
वो खुद थी — कॉलेज की कैंटीन में बैठी, हँस रही थी।
फिर एक झटका… और वीडियो में अचानक वही बस स्टैंड दिखा।
फिर वही लाल बस… और अंत में लिखा था:
“This is not the first time you’ve boarded this.”
बस अब एक सुरंग में दाखिल हो चुकी थी।
दरों-दीवारों से चीखें आ रही थीं, पर कोई दिखता नहीं था।
तभी एक सीट पर बैठी आत्मा ने धीरे से कहा:
> “तुम इस बस में पहले भी चढ़ चुकी हो। ये सातवाँ जन्म है तुम्हारा। हर बार तुम इसी बस में आती हो… और हर बार कुछ याद नहीं रख पाती।”
> “लेकिन इस बार… तुम चुनी गई हो। अंत के लिए।”
अदिति ने ध्यान दिया — उसकी जेब में एक टिकट था।
उसपर लिखा था:
“Final Ride: Seat No. 13”
बस में सिर्फ 13 सीटें थीं… और अब सभी आत्माएं उसकी तरफ धीरे-धीरे मुड़ रही थीं।
बस अचानक रुक गई।
दरवाज़ा खुला — लेकिन अब सामने फिर वही रामपुर बस स्टैंड था।
लेकिन वहाँ कुछ बदला हुआ था।
अदिति को कुछ आवाज़ें सुनाई दीं — जैसे कोई बोल रहा हो:
> “अरे देखो! एक लड़की बेहोश पड़ी है पीछे की सीट पर…”
फिर सब काला हो गया।
सुबह के अख़बार में एक खबर थी:
> “रामपुर बस स्टैंड पर एक पुरानी बस से मिली बेहोश लड़की — मानसिक हालत अस्थिर।”
अस्पताल में अदिति को होश आया।
वो चीख पड़ी: “वो बस… वो आत्माएं… मुझे छोड़ो!!”
डॉक्टरों ने बताया कि उसे psychotic episode हुआ है।
लेकिन जब वो discharge होकर घर आई… और उसने अपने मोबाइल को चार्ज पर लगाया —
उसने एक नई फोटो पाई…
बस की एक selfie।
जिसमें अदिति के पीछे की सीटों पर वो सभी आत्माएं दिखाई दे रही थीं —
और कैमरे के किनारे लिखा था:
> “Seat No. 14 अब खाली है — क्या तुम आओगे?”
“हर शहर में एक ऐसा बस स्टैंड होता है — जहाँ अंतिम बस सिर्फ आत्माओं को लेने आती है।
वक़्त वही होता है… 2:15 AM.
और अगर तुम भी कभी अकेले खड़े हुए… तो शायद वो अगली सवारी तुम बन जाओ।”
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